वांछित मन्त्र चुनें

अवि॒र्न मे॒षो न॒सि वी॒र्या᳖य प्रा॒णस्य॒ पन्था॑ऽअ॒मृतो॒ ग्रहा॑भ्याम्। सर॑स्वत्युप॒वाकै॑र्व्या॒नं नस्या॑नि ब॒र्हिर्बद॑रैर्जजान ॥९० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अविः॑। न। मे॒षः। न॒सि। वी॒र्या᳖य। प्रा॒णस्य॑। पन्थाः॑। अ॒मृतः॑। ग्रहा॑भ्याम्। सर॑स्वती। उ॒प॒वाकै॒रित्यु॑प॒ऽवाकैः॑। व्या॒नमिति॑ विऽआ॒नम्। नस्या॑नि। ब॒र्हिः। बद॑रैः। ज॒जा॒न॒ ॥९० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:90


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब योगी का कर्त्तव्य अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (ग्रहाभ्याम्) ग्रहण करनेहारों के साथ (सरस्वती) प्रशस्त विज्ञानयुक्त स्त्री (बदरैः) बेरों के समान (उपवाकैः) सामीप्यभाव किया जाय, जिनसे उन कर्मों से (जजान) उत्पत्ति करती है, वैसे जो (वीर्याय) वीर्य के लिये (नसि) नासिका में (प्राणस्य) प्राण का (अमृतः) नित्य (पन्थाः) मार्ग वा (मेषः) दूसरे से स्पर्द्धा करनेवाला और (अविः) जो रक्षा करता है, उसके (न) समान (व्यानम्) शरीर में व्याप्त वायु (नस्यानि) नासिका के हितकारक धातु और (बर्हिः) बढ़ानेहारा उपयुक्त किया जाता है ॥९० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे धार्मिक न्यायाधीश प्रजा की रक्षा करता है, वैसे ही प्राणायामादि से अच्छे प्रकार सिद्ध किये हुए प्राण योगी की सब दुःखों से रक्षा करते हैं। जैसे विदुषी माता विद्या और अच्छी शिक्षा से अपने सन्तानों बढ़ाती है, वैसे अनुष्ठान किये हुए योग के अङ्ग योगियों को बढ़ाते हैं ॥९० ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ योगिकृत्यमाह ॥

अन्वय:

(अविः) योऽवति रक्षति सः (न) इव (मेषः) यो मिषति स्पर्द्धते सः (नसि) नासिकायाम् (वीर्याय) योगबलाय (प्राणस्य) (पन्थाः) मार्गः (अमृतः) मृत्युधर्मरहितः (ग्रहाभ्याम्) यौ गृह्णीतस्ताभ्याम् (सरस्वती) प्रशस्तविज्ञानयुक्ता स्त्री (उपवाकैः) उपयन्ति यैस्तैः (व्यानम्) विविधमनन्ति येन तम् (नस्यानि) नासिकायै हितानि (बर्हिः) वर्द्धनम् (बदरैः) बदरीफलैः (जजान) जनयति ॥९० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यथा ग्रहाभ्यां सह सरस्वती बदरैरुपवाकैर्जजान, तथा वीर्याय नसि प्राणस्याऽमृतः पन्था अविर्न मेषो व्यानं नस्यानि बर्हिश्च उपयुज्यते ॥९० ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा धार्मिको न्यायाधीशः प्रजा रक्षति, तथैव प्राणायामादिभिः संसाधिताः प्राणा योगिनं सर्वेभ्यो दुःखेभ्यस्त्रायन्ते, यथा विदुषी माता विद्यासुशिक्षाभ्यां स्वसन्तानान् वर्द्धयति, तथाऽनुष्ठितानि योगकर्माणि योगिनो वर्द्धयन्ति ॥९० ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे धार्मिक न्यायाधीश प्रजेचे रक्षण करतो तसे प्राणायामाद्वारे प्राणही योग्याच्या दुःखाचे निवारण करतात. ज्याप्रमाणे विदुषी माता विद्या व चांगले संस्कार यांनी आपल्या संतानांना वाढवितात. त्याप्रमाणे अनुष्ठान केलेले योगी योगांगाने वाढतात.